Elephant information in hindi | हाथी की प्रजाति और हाथियों का इतिहास।


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किसी समय दुनिया में कुल ग्यारह हाथी की प्रजाति हुआ करती थी लेकिन आज कुल तीन प्रजातियां ही बची हैं। वुली मैमथ 'Woolly mammoth' हाथियों की वो आखरी प्रजाति का हिस्सा थी जो आज से ठीक दस हज़ार साल पहले विलुप्त हो चुकी है जिसके विलुप्त होने के बाद बाकी बची 3 प्रजातियों ने अपना अस्तित्व बचाये रखा और आज धरती पर जी रहे है, जिन्हे हम 1) अफ्रीकी झाड़ी हाथी,
2) अफ्रीकी वन हाथी और
3) एशियाई हाथी
के नाम से जानते हैं जो आज सबसे ज़्यादा अफ्रिका और एशिया के जंगलों में पाए जाते हैं।
हाथियों की इन तीनो प्रजातियों के अकार, वज़न, रंग, व्यवहार, जीवन व्यापन और बौद्धिक क्षमता में बहुत से परिवर्तन है।


  हाथी की तीनो प्रजाति के बारे में कुछ ख़ास बातें।  



i) अफ्रीकी झाड़ी हाथी - African bush elephant

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अफ्रीकी झाड़ी हाथी अकार और वज़न में सबसे बड़े होते हैं जिनका वज़न लगभग 6300 किलोग्राम होता है। ये प्रजाति सहारा मरुस्थल के दक्षिण इलाकों में पाए जाते हैं। अफ्रीकी झाड़ी हाथियों को भीषण गर्मी का सामना करता पड़ता है और इससे थोड़ी रहत पाने के लिए उनके बड़े-बड़े कान और झुर्रीदार चमड़ी उनका साथ देते हैं।

अपने कानों का इस्तेमाल वो पंखे की तरह करते हैं, और इसी वजह से उनके कान ज़्यादा बड़े होते हैं। इनकी मोटी और झुर्रीदार चमड़ी भी इनके बड़े काम आती है, गीली मिट्टी (कीचड़) में नहाने के बाद इनकी मोटी चमड़ी की दरारों में पानी के कण्ड और गीली मिटटी चिपक जाती है जो कुछ समय तक इनके शरीर में पर्याप्त नमी बनाये रखती है और इनको भीषण धुप और गर्मी से बचाती है।

अफ्रीकी झाड़ी हाथी एक वयस्क हाथी एक दिन में 180 किलोग्राम तक भोजन कर सकते हैं जिसमें हरे पेड़-पौथों, घासों के साथ-साथ सूखें पत्ते और पेड़ की छाल भी शामिल होते हैं (पेड़ की छाल खाने से इन्हे भरी मात्रा में कैल्शियम मिलता है) और हर रोज़ 180 से 230 लीटर तक पानी पीते हैं और इनके दांत कि लम्बाई भी सबसे ज़्यादा होती है।
एक अफ्रीकी झाड़ी हाथी के दांत ली लम्बाई 3.51 मीटर (11.5 फीट) थी और उसका वजन 117 किलोग्राम था।



ii) अफ्रीकी वन हाथी - African forest elephant

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अफ्रीकी वन हाथी मध्य और पश्चिम के उष्णकटिबंधीय 'Tropical areas' इलाकों में और सवाना के हरे भरे मैदानों में पाए जाते हैं जो अकार और वज़न में तीनों प्रजातियों में सबसे छोटे होते हैं और इनकी ऊँचाई लगभग 7 फीट 10 इंच होती है। अफ्रीकी वन हाथी भूरे (ग्रे) रंग का होता है, इनका वज़न लगभग 2700 किलोग्राम तक ही रहता है जो सबसे कम होता है।

अफ्रीकी वन हाथियों को नमी वाले इलाकों में रहने की वजह से इन्हे अपने आप को ठंडा रखने में ज़्यादा परेशानी नहीं होती, इनका झुण्ड ज़्यादातर पानी से भरो तालाबों, बहती नदियों के इर्द-गिर्द ही रहता है, गर्मी ज़्यादा होने पर ये पानी में, गीली मिटटी के पोखर में डुबकी लगा लेते हैं जिससे इनके शरीर की नमी बरकरार रहती है। और इनके कान भी अफ़्रीकी मरुस्थलीय हाथियों की तरह बड़े नहीं होते।

इनका झुण्ड एक दिन में लगभग 7.8 किलोमीटर की यात्रा करता है और 2,000 किमी तक की सीमा में रहता है, इनके इलाकों में खाने, पानी की कमी कभी नहीं होती ये हमेशा भोजन करते दिखाई देते हैं।
यह पश्चिमी अफ्रीका, कांगो बेसिन के नम जंगलों के मूलनिवासी हैं और अफ़्रीकी वन हाथियों की सबसे बड़ी जनसंख्या अफ्रीका के गैबॉन में पायी जाती है।



iii) (एशियाई हाथी - Asian elephant)

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एशियाई हाथी अकार और वज़न में अफ्रीकी वन हाथियों से बड़े व अफ्रीकी झाड़ी हाथियों से छोटे होते हैं। एशियाई हाथी का वज़न लगभग 4000 किलोग्राम होता है। त्वचा का रंग भूरा ‘grey’ होता है और ये सिर्फ पचास साल तक ही ज़िंदा रह पाते हैं। एशियाई हाथी ज़्यादातर भारत, नेपाल, बांग्लादेश, चीन, भूटान, म्यांमार, थाईलैंड, वियतनाम जैसे देशों के जंगलों में पाए जाते हैं और इनका उपयोग पूरे एशिया में पर्यटन के लिए किया जाता है।

एशियाई हाथियों में उच्च विकसित नियोकोर्टेक्स ‘Neocortex’ होता है जिस वजह से इनकी सोचने समझने कि शक्ति ज़्यादा होती है जो इनके जीवन व्यापन में ज़्यादा महत्वपूर्ण योगदान देती है।
एशियाई हाथी एशिया में सबसे बड़ा जीवित भूमि जानवर है लेकिन अब इनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। सन्न 1986 से ही एशियाई हाथियों को IUCN रेड लिस्ट ‘IUCN Red List’ में लुप्तप्राय के रूप में सूचीबद्ध कर दिया गया है क्योंकि पिछले साठ-सत्तर सालों से इनकी जनसंख्या लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट आई है।

सिंधु घाटी में मोहनजो-दड़ो की खुदाई में भी एशियाई हाथियों की हड्डियों के संकेत मिले है जो ये दर्शाते हैं कि उन्हें सिंधु घाटी सभ्यता में कार्य के लिए इस्तेमाल भी किया गया था। भारतीय संस्कृति में तो हाथियों को बहुत ही सम्मान प्राप्त है जिसका सबसे बड़ा उदाहरण हिन्दू धर्म के देवता/भगवान 'श्री गणेश' के रूप में है।

elephant information in Hindi: हाथियों के परमाणु डीएनए के परिक्षण से पता चलता है कि अफ़्रीकी हाथियों की दोनों प्रजातियां विशेष रूप से लगभग 19 लाख साल पहले से धरती के निवासी है। धरती पर जीवित हाथियों के सबसे करीबी रिश्तेदार आज भी धरती पर मौजूद हैं जिनके नाम ‘Manatees’ मैनेटेस और डगॉन्ग ‘Dugong’ है, यह दोनों ही एक मध्यम आकार के समुद्री जीव हैं जो समंदर की गहराइयों में आज भी जीवित हैं। हाथी धरती के उन जीवों में से है जो अपना सारा दिन बस भोजन करने में ही बिताते हैं और एक दिन में लगभग 180 किलोग्राम तक खाना खा सकते हैं।

                  

हाथी समझदार जानवर है।

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हाथी किसी दर्पण में बिना किसी शंका के अपना प्रतिबिम्भ पहचान सकते हैं, हाथियों की बुद्धि का स्तर डॉल्फिन, बन्दर और किसी हद तक इंसानों की ही तरह होता है, उनकी मेमोरी पावर बहुत ही तेज़ होती है- वे कभी भी कुछ भूलते नहीं है और यही खासियत इन्हे भुद्धिमत्ता के स्तर पे लाती है।

हाथी दिमाग से तेज़ ही नहीं बल्कि दिल से बहुत ही दयालु और भावुक भी होते हैं, सभी जानवरों के मुकाबले ये ज़्यादा खुश रहने वाली जीव होते हैं, बच्चों की तरह खेलते हैं, शरारत करते हैं, लड़ाई करते हैं और प्रेम करते हैं।
हाथियों में भी पारिवारिक प्रेम और एकता बनाये रखने की समझ होती है, हाथियों का पूरा झुण्ड हमेशा एक दुसरे के साथ रहता हैं और परिवार के सभी सदस्य मिलकर बछड़ों की देखभाल भी करते है।

पूरे झुण्ड में सबसे बड़ी उम्र की मादा को उच्च दर्जा प्राप्त होता है जिस तरह हम इंसानों में परिवार का मुखिया हुआ करता हैं। झुण्ड की मुखिया ही पूरे झुण्ड को निर्देश देती है, खाना खाने, पानी पीने और आराम करने के लिए जगहों का चयन भी वही करती हैं।
गर्मी के मौसम में ये अपने बड़े कानों को फड़फड़ाते हैं जिससे हवा की धाराएं बनती हैं और शरीर की गर्मी को नियंत्रित करते हैं।

अपने भरी वज़न और बड़े अकार भी वजह से हाथी अनजाने में ही वातावरण को संतुलित करने में भी अपनी अहम भूमिका निभाते हैं।
जब भी कोई हाथी किसी भी घास के मैदान से गुज़रते है तो ज़मीन पर पड़े उसके मोठे पैर कई छोटे-छोटे गड्ढों का निर्माण करते हैं जिसमें बरसात का पानी भर जाता है और छोटे-बड़े कीड़े-मकौड़े, पक्षियों को पीने का पानी मिल जाता है।

इनके वज़न से धरती में हलचल पैदा होती और छोटे-छोटे कीड़ें घबराकर अपने बिलों से बहार आ जाते हैं, जो बाद में पक्षियों का भोजन बन जाते हैं। इनका करा हुआ गोबर जो किसी का भोजन बनता है तो किसी पेड़-पौधे के जन्म का कारण बनता है।



हाथी का गोबर - Elephant dung

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हाथी एक दिन में औसतन 120 से 180 किलोग्राम तक खाना कहते हैं जिसमें कई तरह की घांस, पौधे, पेड़ की पत्तियां, जिसमें उनके बीज भी शामिल होते है और उसके बाद वो जो गोबर करते हैं वो हमारे वातावण के लिए और भी अच्छा होता है क्यूंकि जब भी वह गोबर धरती पर गिरता है तो कई तरह के कीड़े-मकौड़े उसे अपना भोजन बनाते हैं और उसके संड़ जाने के बाद वही पेड़-पौधों के लिए खाद का भी काम करती है।
उसमें बहुत अलग-अलग तरह के बीज होने की वजह से उससे कई तरह की घांस और पेड़-पैधे भी जन्म लेते हैं।

अफ्रीका के कांगो गणराज्य में हाथियों के गोबर के ढेर पर एक परिक्षण किया गया जिसमें पता चला कि सिर्फ एक ढेर में 1102 बड़े बीज होते हैं जिनमे कम से कम 96 विचित्र पौधों की प्रजातियों के बीज, 73 पेड़ कि प्रजातियों के बीज और कई तरह के घासों के बीच पाए गए।

हर रोज़ हाथियों के गोबर से कई तरह कि घांस, पेड़ और पौधों कि प्रजातियों के बीज जंगलों में बिखर जाते है और जंगलों के निर्माण को बढ़ावा मिलता है इसलिए हाथियों को "जंगल के मेगगार्डनर" के नाम से भी जाना जाता है और इस मुख्या योगदान में सबसे ऊपर अफ्रीकी वन हाथी का नाम आता है।


हाथी की सूंड -Elephant's Trunk

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एक वयस्क हाथी की सूंड में एक भी हड्डी नहीं होती और ये किसी भी दिशा में घूम सकती है, इसमें लगभग 40-60 हज़ार तक मांसपेशियां होती हैं और एक मानव के पूरे शरीर में सिर्फ 600 हैं।

हाथी अपनी सूंड का उपयोग पानी-पीने के लिए नहीं बल्कि पानी चूसकर मुँह में डालने, ज़मीनी घास नोचने और पेड़ कि ऊँचाई पर हरी पत्तियों को तोड़कर मुँह तक पहुँचाने में, वस्तुओं को उठाने या स्पर्श करने, संवाद करने और खतरा भांपने पर चेतावनी देने के लिए भी करते हैं।

इनकी सूंड इतनी ताकतवर होती है कि वो भरी भरकम पेड़ के तने को एक पल में ही चीर सकती है और हाथी अपनी सूंड से अपने शरीर का लगभग 3% भार उठ सकता है।

हाथियों ने एक दुसरे से संवाद करने के लिए भी अपनी सूंड को विकसित किया है, ये अपनी सूंड से कुछ अलग तरह कि आवाज़ें निकालते हैं जिससे वे बहुत दूर तक भी अपने साथियों को अपना सन्देश दे सकते हैं जैसे कि- अपने झुंड को इकठ्ठा करना, झुण्ड से बिछड़े हुए साथी को ढूंढना, चेतावनी देना आदि।

खासतौर पर ये अपनी सूंड से इतनी बारीक आवाज़ें निकलते हैं कि दूर खड़े अपने सदस्य से संवाद भी कर लें और आपको पता भी न चले।



हाथी का बच्चा - Baby elephant

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तुरंत पैदा हुए एक हाथी के बच्चे का कुल वज़न 90-120 किलोग्राम होता है और वो पूरी तरह अपने परिवार पर निर्भर रहता है।

एक हाथी का बच्चा 19-22 महीनों तक हथनी के गर्भ में रहता है और पैदा होने के बाद 4 साल तक अपनी माँ का दूध पर ही ज़िंदा रहता है, तक वो बड़ा होकर खुद पर निर्भर नहीं हो जाता तब तक पूरी तरह अपने झुण्ड के सुरक्षा घेरे में ही रहता है।

एक हाथी का बच्च जब पैदा होता है तो उसे यह पता हीं नहीं होता की उसे अपनी सूंड का क्या करना है, वे उसे बिना बात ऐसे ही हिलता-डुलता है और कभी-कभी तो खुद ही उसपर पाँव रख देता है। धीरे-धीरे जब वे बड़ा होता जाता है तो उसे इसका इस्तेमाल सिखाया जाता है।

जब वो आत्मनिर्भर हो जाता है तब झुण्ड से अलग होकर अपना जीवन अपने तरीके से बिताता है लेकिन वयस्क होने के बाद संभोग के मौसम में परिवार के समूहों से वापस जुड़ जाता हैं।
हाथी 12 से 15 साल की उम्र में यौन-परिपक्वता में प्रवेश करते हैं और दोनों ही लिंग के हाथी 17 साल की उम्र में वयस्क हो जाते हैं,  इनकी पीढ़ी की लंबाई 22 वर्ष है।



हाथी के गज दन्त "दांत" -Elephant's Tusks, Ivory

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हाथी के यह दांत पैदाइशी होते है मगर हाथी के जन्म के 1 साल बाद वे टूट जाते हैं और फिर नए मज़बूत दांत उसकी जगह ले लेते हैं। इनकी लम्बाई 3 मीटर तक होती है और इनका वज़न लगभग 35 किलोग्राम होता है। हाथी के ये दांत इनके बहुत काम आते हैं, हाथी अपनी सूंड की ही तरह इनका भी बखूबी इस्तेमाल करते हैं। जैसे कि- शिकार करना, ज़मीन खोदना, पेड़ों की छाल निकलना आदि।

मगर हाथी के ये दांत जितने कमाल के है उतना ही ये इनके लिए जान का खतरा भी हैं, इनके दांत से कई कीमती गहने और काम के उपकरण बनाये जाते हैं जैसे कि- चोप स्टिक 'Chopsticks', पियानो कीस 'Piano keys' आदि। हाथियों को इतने बड़े पैमाने पर मारे जाने पर भी इनकी सुरक्षा के लिए आजतक कोई बड़ा फैसला नहीं लिया गया और आज भी जंगलों में अवैध रूप से हाथियों का शिकार जारी है।

हाथी के इन दांतों कि वजह से इतने हाथियों को मारा गया है कि सिर्फ इन साठ-सत्तर सालों में ही इनकी आबादी 50% तक घाट गई है।
  

elephant information in hindi: हाथियों कि नस्ल पर खतरा सिर्फ उनके शिकार किये जाने भर से ही नहीं है बल्कि इंसानों कि बढ़ती आबादी से भी है, क्यूंकि हाथी एक प्रवासी जीव है और ये हर साल 100 किलोमीटर से भी ज़्यादा का सफर करते हैं
लेकिन जब उनके सफर के बीच में हम इंसानों द्वारा जंगलों को काट कर बनाये गए रिहाइश इलाके, सड़कें, रेल कि पटरियां और किसी भी तरह कि बंधा उनके रास्तों में आती है तो वे अपनी राह से भटक जाते हैं और फिर उन्हें भोजन और पानी कि कामी का सामना करना पड़ता हैं जिस कारण कई हाथी भूख से मर जाते हैं तो कई हम इंसानों का ही शिकार बन जाते हैं।

कम जन्म और ज़्यादा मृत्यु दर के कारण भी पालतू हाथियों की आबादी लगातार घट रही है। जिन हाथियों को पाल लिया जाता है वो हाथी 60 साल से अधिक जीवित रहते हैं लेकिन चिड़ियाघरों में एशियाई हाथी बहुत कम उम्र में मर जाते हैं।

इंसानों ने तो हाथियों का सदियों से इस्तेमाल किया है कभी परिवहन के रूप में तो कभी भारीभरकम सामान उठाने वाली क्रेन के रूप में तो कभी युद्ध में एक सैनिक के रूप में, जिसके सबूत आप इतिहास और वर्तमान दोनों में ही पाएंगे।


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हाथी जैसे कई अन्य जानवरों का हम अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करते हैं, मगर हमें उनकी सुरक्षा, देखभाल और उनके अस्तित्व को बचाये रखने के लिए भी पूर्ण रूप से अपना योगदान देना चाहिए। हमने हमेशा से इन जानवरों का अपने हित के लिए इस्तेमाल किया, पीढ़ी दर पीढ़ी इनका शोषण किया, बस इन्हे दो वक़्त खाना खिला कर बदले में इनसे मनचाहा काम लिया।
कभी ये नहीं सोचा कि ये जानवर हम इंसानों कि जागीर नहीं हैं बल्कि हमारी ही तरह धरती पर जन्मे हैं, इन्हे हमने नहीं प्रकृति ने बनाया है फिर इनके साथ अपने गुलामों जैसा बर्ताव क्यों?

इतिहास में जो भी जानवर विलुप्त हुए वो प्रकृति की मर्ज़ी थी मगर आज हम इंसान इन जानवरों को अपने स्वार्थ के लिए मार रहे हैं इनका शोषण कर रहे हैं। दुनिया में सबसे समझदार और सभ्य जीव हम मानव ही हैं जिसने धरती से चाँद तक सफर किया, हज़ारों आविष्कार किये, अनेखों खोजें की, ब्राह्मण का अध्ययन किया, अनेकों उपलब्धियां हांसिल करने के बाद भी हम आज तक ये स्वीकार ही नहीं कर पाए हैं की इस धरती पर रहने वाले सभी जीवों का एक बराबर हक़ है।

आज हमारी इस नासमझी की वजह से ही आज धरती के अनमोल जीव विलुप्ति की कगार पर खड़े हैं और ऐसा करके हम सिर्फ उनको नहीं बल्कि प्रकृति को ही नाराज़ कर रहे हैं इसलिए अब भी वक़्त है थम जाएँ, वरना कभी ऐसा न हो कि प्रकृति हमसे ही नाराज़ हो जाये और जिस तरह हम इन जीवों का सर्वनाश कर रहे हैं वही हश्र हमारा भी न हो जाये।




हमने हाथियों के बारे में हमारी इस पोस्ट elephant information in hindi में आप को वही सटीक जानकारियां दी है जो दशकों की रिसर्च से हासिल हुई है। क्या आपको ये जानकारी पसंद आई? अगर हाँ तो आप से अपने दोस्तों के साथ शेयर ज़रूर करें, ऐसी ही जानकारियां हमेशा प्राप्त करने के लिए 
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